Mithi imli ki krishi paddhati

 

मिठी इमली का परिचय:

मिठी इमली यानि की मनिला टेमारिंड का वैज्ञानिक नाम पिथेसेलोबियम डुल्सी है, जो उष्णकटिबंधीय ओर सदाबहार पेड़ है। यह  पेड़ फैबेसी कुल का है। जो लगभग 10 से 15 मीटर ( 33 से 49 फ़ुट ) की  ऊंचाई तक बढ़ता  है। खट्टी इमली (टेंमारिंडस इंडिका) की तुलना में मिठी इमली (पिथेसेलोबियम डुल्सी) एक कांटेदार वृक्ष है। अंग्रेजी मे, इसे ‘कवामाचिल’, मद्रास थ्रोन, मंकीपोड ट्री, एवं ‘मनिला टेमारिंड’ के नाम से पहचाना जाता हे, ओर हिंदी में इसे ‘विलायती बाबुल’, ‘विलायती इमली’,’आमली’, ‘मिठी इमली’ एवं  ‘जंगल जलेबी’ के नाम से जाना जाता है। फल चपटे भवरों से गोलाकार  आकार मे घिरा होता हे, जो भारतीय मिठाई जलेबी जेसा दिखता हे, इसलिए इस पेड़ को ‘जंगल जलेबी’ कहते हे।

स्थानीय नाम

संस्कृत कोदुक्कापुली
मलयालम कोरुक्कापुली
 गुजराती बखाई आम्बली, गोरस आम्बली, मिठी आम्बली
मराठी इंगराजी चिंच
तेलुगु सीमा चिंताकाय
ओडिया सीमा कैयान
कन्नड़ सीमे हुनसे
बेंगाली जिलापी

 

मिट्टी और जलवायु:

मिठी इमली  का पेड़  चट्टानी और  क्षारीय जलवाली मिट्टी सहित विभिन्न प्रकार की मिट्टी में पनप सकता है। यह रेतीली मिट्टी मे यह अच्छा बिकास करता हे, उपरांत  सूखी और भेजयुक्त  दोनों स्थितियों में उग सकता है। यह पेड़ सूखे के प्रति प्रतिरोधी है और समुद्र तल से 1,500 मीटर तक की सूखी मिट्टी में भी जीवित रह सकता है। इसे शुष्क से अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जा सकता है और इसके लिए सालाना न्यूनतम 500-1000 मिमी वर्षा की आवश्यकता होती है। हालाँकि, यह 300  मिमी से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी अच्छी तरह से विकसित हो सकता है। यह पेड़ सर्दियों में 7 से 8 डिग्री सेल्सियस से लेकर गर्मियों में 40 से 42 डिग्री सेल्सियस तक के औसतक  मासिक तापमान को सहन कर सकता है।

पोषक तत्व:

मिठी इमली के फल विभिन्न पोषक  तत्वों , विटामिन सी,  एंटीऑक्सीडेंट  और रेशे से भरपूर होते हे।  इसके पेड़ के अलग अलग भागों से विभिन्न उपयोगी  एवं लाभदायी केमिकल निकाले जाते हे।   जिसमे, मोम, हेक्साकोसानॉल, प्रोलाइन और ल्यूसीन उसके फलो मे से निकाले जाते हे। और ल्यूकोरोबिनाटिनिडाइन, ल्यूकोफिसेटिनिडिन एवं  मेलाकासिडिन इसकी लकड़ी से निकाला जाता हे।

पोषक तत्व:

पानी 77.8 %
प्रोटीन 3 %
कार्बोहाइड्रेट 18.2 %
चरबी 4 %
रेशा 1.2 %
आयर्न 5 मिलीग्राम
सोडियम 19 मिलीग्राम
कैल्शियम 13 मिलीग्राम
फोस्फोरस 42 मिलीग्राम
पोटैशियम 222 मिलीग्राम
थियामिन/बी 1 24 मिलीग्राम
राइबोफ्लेविन/बी 2 10 मिलीग्राम
विटामिन ए 15 मिलीग्राम
विटामिन सी 133 मिलीग्राम

 

सामान्य उपयोग:

मीठी इमली का पेड़ अपने कई उपयोगों के लिए जाना जाता है। भारत में, मिठी इमली को स्थानीय व्यंजनों में गिना  गया है, विशेष रूप से दक्षिण भारत और तटीय क्षेत्रों में, जहां इसकी तीखी-मीठी फली का उपयोग चटनी, करी और अचार जैसे रोजिंदा वपररासयुक्त होने वाले व्यंजनों में किया जाता है । यह आमतौर पर सड़कों और घरो के  पिछवाड़े में सजावटी और छाया प्रदान करने वाले पेड़ के रूप में उगाया जाता है। दक्षिण भारत में, विशेषकर तमिलनाडु में, अच्छी बाड़ लगाने के लिए इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। यह पेड़ छाया, उपयोगी फल और लकड़ी प्रदान करने के लिए लोकप्रिय है। इस पेड़ की लकड़ी का उपयोग स्थानीय स्तर पर निर्माण, पैनलिंग, बक्से और कृषि उपकरणों के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त, इसकी लकड़ी का उपयोग ईंट भट्टों के लिए ईंधन के रूप में और उन क्षेत्रों में घरेलू ईंधन के रूप में किया जाता है जहां लकड़ी दुर्लभ है। छाल में लगभग 25% टैनिन होता है और बीज और पत्तियां भी टैनिन से भरपूर होती हैं।

औषधीय उपयोग:

इस पेड़ के फल और बीज का उपयोग औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है। इसका उपयोग दस्त, पेचिश, हेमोप्टाइसिस, सीने में दर्द और आंतरिक अल्सर के इलाज के रूप में किया जा सकता है। पौधों के भाग जैसे फल और बीज भी खाने योग्य होते हैं। पत्तियों को दर्द और यौन घावों के लिए मलहम के रूप में लगाया जा सकता है। पत्तियों के काढ़े का उपयोग अपच, आंतों के विकार, कान दर्द, दांत दर्द, कुष्ठ रोग और लार्विसाइड के लिए किया जाता है। जड़ की छाल का उपयोग दस्त और पेचिश के इलाज के लिए किया जाता है। बीजों से खाद्य तेल प्राप्त किया जा सकता है, जिसका उपयोग साबुन बनाने में भी किया जा सकता है।

फुल :

इस पेड़ के फूल छोटे डंठल वाले, हरे-सफेद, सुगंधित और रेशमी होते हैं, जो जनवरी से मार्च मे दिखाई देते हैं। फल पकने पर गुलाबी रंग के  हो जाते हैं और इनका पल्प  गुलाबी या सफेद होता है, जो खाने योग्य होता है। फल 10 से 15 सेमी लंबे, 1 से 1.5 सेमी चौड़े, कसकर कुंडलित और लाल-भूरे रंग के होते हैं। प्रत्येक फल में कम से कम पाँच से दस फलियाँ होती हैं जिन्हें पोड  कहा जाता है। परागण मुख्य रूप से मधुमक्खियों द्वारा किया जाता है। फूल आने के लगभग 3 से 4 महीने बाद, फल कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। फल गर्मियों से लेकर मानसून की शुरुआत तक बाजार में उपलब्ध रहते हैं।

किस्में:

वर्तमान में मीठी इमली की कोई मान्य किस्म नहीं है, क्योंकि मिठी इमली के जर्मप्लाज्म की पहचान करने के लिए कोई व्यवस्थित कार्य नहीं किया गया है। हालाँकि, देश के अधिकांश भागों में खेती के लिए आमतौर पर दो प्रकार की मिठी इमली – लाल ऐरिल और क्रीमी ऐरिल का उपयोग किया जाता है।

रोप:

इस बहुउद्देश्यीय वृक्ष को लगाने की विधि इसके उपयोग के अनुसार बदलती रहती है।फल उत्पादन के लिए पौधों को 8 x 8 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। रोपण के लिए सबसे अच्छा समय जुलाई-अगस्त का  है। अंकुरीत बीज  60 x 60 x 60 सेमी के अच्छी तरह से तैयार गड्ढों में लगाए जाते हैं। अवरोधक मिट्टी में गड्ढे का आकार आवश्यकतानुसार बढ़ाया जा सकता है। यदि इसे बाड़ के रूप में उपयोग किया जाना है, तो बीजों को 15 सेमी की दूरी पर 2-3 पंक्तियों में बोया जाता है, जो नियमित छंटाई और प्रशिक्षण के बाद, एक अभेद्य बाड़ में विकसित हो जाते हैं।

सिंचाई प्रबंधन:

यह पेड़ बिना पानी दिए भी बहुत अच्छे से बढ़ता है, लेकिन शुरुआती अवस्था में पौधे के विकास के लिए पानी देना जरूरी होता है। एक बार पौधे की वृद्धि स्थापित हो जाने पर, नियमित रूपसे पानी देना अनिवार्य नहीं है। गर्मियों के दौरान पाणी देने से फलों का आकार बेहतर होता है और उत्पादन बेहतर  मिलता है।

उर्वरक प्रबंधन:

मीठी इमली की पोषण संबंधी आवश्यकताओं पर कोई व्यवस्थित जानकारी नहीं है, क्योंकि मौजूदा बागान मुख्य रूप से बिखरे हुए और सड़क के किनारे  किये गये हैं। जहां आमतौर पर पोषक तत्वों की आवश्यकता नहीं होती है। प्रति पेड़ 40-50 किलोग्राम गोबर की खाद और 500 -500 ग्राम नाइट्रोजनयुक्त ओर फॉस्फेटिक उर्वरक देना फायदेमंद होता है। फरवरी-मार्च और जुलाई-अगस्त के दौरान खाद डालें और खाद डालने के बाद हल्की सिंचाई का प्रबंधन करें।

फलों की कटाई:

फल की कटाई तब करनी चाहिए जब  फल के छिलके का रंग हरे से गुलाबी हो जाए या जब पके फल का पल्प  गुलाबी हो जाए। हालाँकि, पेड़ पर चढ़ना जोखमी  हो सकता है क्योंकि शाखाएँ कांटेदार होती हैं। फल तोड़ने के लिए बांस के खंभों के शीर्ष पर एक तेज छंटाई वाला चाकू बांध दिया जाता है। फिर काटी गई फलियों को शाखाओं से अलग किया जाता है और बांस की टोकरियों में पैक किया जाता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि फल दीर्घकालिक भंडारण के लिए उपयुक्त नहीं हैं।

उपज:

बीज द्वारा प्रचारित पौधे रोपण के 5-6 साल बाद उत्पादन देना शुरू कर देते हैं। उपज मिट्टी के प्रकार, जलवायु, प्रजनन विधियों और प्रबंधन प्रथाओं के आधार पर भिन्न हो सकती है। उचित प्रबंधन के साथ, एक अच्छी तरह से प्रबंधित एक पेड़ 200-250 किलोग्राम पकी फलियाँ का उत्पादन कर सकता है।

फल उत्पादन की एक विशेष समस्या:

फलों का फटना या विभाजित होना एक बड़ी समस्या है। हालाँकि, फल का विभाजित होना  फली की परिपक्वता की पहचान  है, जिससे गुलाबी पल्प  और भूरे रंग के बीज होते हैं। जब फलियाँ फटती हैं तो पल्प जमीन पर गिरने लगता है। इसके अतिरिक्त, तोते और अन्य पक्षी पेड़ से फलों की फलियाँ तोड़ सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उन फलियों का पल्प  कम हो जाता है। इसके अलावा, वर्षा के कारण होने वाले रोगजनकों के कारण विभाजित फलियों पर फंगल और जीवाणु से नुकसान  हो सकता  है, जो फल की गुणवत्ता और उत्पादन को प्रभावित कर सकती है।

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